Mata Ka Anchal class 10 | माता का अंचल

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ध्वनि प्रस्तुति 




 सारांश 


'माता का अंचल' कहानी मातृ-प्रेम ( ममता ) का अनूठा (बेजोड़) उदाहरण है। माता का अंचल पाठ में बताया गया है कि एक नन्हे बच्चे को सारे जहाँ की खुशियाँ, संतुष्टि,सुरक्षा और शांति की अनुभूति केवल माँ  के आँचल  तले ही मिलती है।


शिवपूजन सहाय के बचपन का नाम “तारकेश्वरनाथ” था। मगर घर में उन्हें “भोलानाथ” कहकर पुकारा जाता था। भोलानाथ अपने पिता को “बाबूजी” व माता को “मइयाँ ” कहते थे। बचपन में भोलानाथ का अधिकतर समय अपने पिता के सानिध्य में ही गुजरता था। वो अपने पिता के साथ ही सोते , उनके साथ ही जल्दी सुबह उठकर स्नान करते और अपने पिता के साथ ही भगवान की पूजा अर्चना करते थे।


वो अपने बाबूजी से अपने माथे पर तिलक लगाकर खूब खुश होते थे। और जब भी भोलानाथ के पिताजी रामायण का पाठ करते , तब भोलानाथ उनके बगल में बैठ कर अपने चेहरे का प्रतिबिंब आईने में देख कर खूब खुश होते। पर जैसे ही उनके बाबूजी की नजर उन पर पड़ती। तो वो थोड़ा शर्माकर , थोड़ा मुस्कुरा कर आईना नीचे रख देते थे। उनकी इस बात पर उनके पिता भी मुस्कुरा उठते थे।

पूजा अर्चना करने के बाद भोलानाथ राम नाम लिखी कागज की पर्चियों में छोटी -छोटी आटे की गोलियां रखकर अपने बाबूजी के कंधे में बैठकर गंगा जी के पास जाते। और फिर उन आटे की गोलियां को मछलियों को खिला देते थे।


उसके बाद वो अपने बाबूजी के साथ घर आकर खाना खाते। भोलानाथ की मां उन्हें अनेक पक्षियों के नाम से निवाले बनाकर बड़े प्यार से खिलाती थी। भोलानाथ की माँ भोलानाथ को बहुत लाड -प्यार करती थी। वह कभी उन्हें अपनी बाहों में भर कर खूब प्यार करती , तो कभी उन्हें जबरदस्ती पकड़ कर उनके सिर पर सरसों के तेल से मालिश करती ।


उस वक्त भोलानाथ बहुत छोटे थे। इसलिए वह बात-बात पर रोने लगते। इस पर बाबूजी भोलानाथ की मां से नाराज हो जाते थे। लेकिन भोलानाथ की मां उनके बालों को अच्छे से सवाँर कर , उनकी एक अच्छी सी गुँथ बनाकर उसमें फूलदाऱ लड्डू लगा देती थी और साथ में भोलानाथ को रंगीन कुर्ता व टोपी पहना कर उन्हें “कन्हैया” जैसा बना देती थी।


भोलानाथ अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती और तमाशे करते। इन तमाशों में तरह-तरह के नाटक शामिल होते थे। कभी चबूतरे का एक कोना ही उनका नाटक घर बन जाता तो , कभी बाबूजी की नहाने वाली चौकी ही रंगमंच बन जाती।

और उसी रंगमंच पर सरकंडे के खंभों पर कागज की चांदनी बनाकर उनमें मिट्टी या अन्य चीजों से बनी मिठाइयों की दुकान लग जाती जिसमें लड्डू , बताशे , जलेबियां आदि सजा दिये जाते थे। और फिर जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के बने पैसों से बच्चे उन मिठाइयों को खरीदने का नाटक करते थे। भोलानाथ के बाबूजी भी कभी-कभी वहां से खरीदारी कर लेते थे।


ऐसे ही नाटक में कभी घरोंदा बना दिया जाता था जिसमें घर की पूरी सामग्री रखी हुई नजर आती थी। तो कभी-कभी बच्चे बारात का भी जुलूस निकालते थे। जिसमें तंबूरा और शहनाई भी बजाई जाती थी। दुल्हन को भी विदा कर लाया जाता था। कभी-कभी बाबूजी दुल्हन का घूंघट उठा कर देख लेते तो , सब बच्चे हंसते हुए वहां से भाग जाते थे।


बाबूजी भी बच्चों के खेलों में भाग लेकर उनका आनंद उठाते थे। बाबूजी बच्चों से कुश्ती में जानबूझ कर हार जाते थे । बस इसी हँसी खुशी में भोलानाथ का पूरा बचपन मजे से बीत रहा था।


एक दिन की बात है सारे बच्चे आम के बाग़ में खेल रहे थे। तभी बड़ी जोर से आंधी आई। बादलों से पूरा आकाश ढक गया और देखते ही देखते खूब जम कर बारिश होने लगी। काफी देर बाद बारिश बंद हुई तो बाग के आसपास बिच्छू निकल आए जिन्हें देखकर सारे बच्चे डर के मारे भागने लगे।

संयोगवश रास्ते में उन्हें मूसन तिवारी मिल गए। भोलानाथ के एक दोस्त बैजू ने उन्हें चिढ़ा दिया। फिर क्या था बैजू की देखा देखी सारे बच्चे मूसन तिवारी को चिढ़ाने लगे। मूसन तिवारी ने सभी बच्चों को वहाँ से खदेड़ा और सीधे पाठशाला चले गए। पाठशाला में उनकी शिकायत गुरु जी से कर दी। गुरु जी ने सभी बच्चों को स्कूल में पकड़ लाने का आदेश दिया। सभी को पकड़कर स्कूल पहुंचाया गया। दोस्तों के साथ भोलानाथ को भी जमकर मार पड़ी।


जब बाबूजी तक यह खबर पहुंची तो , वो दौड़े-दौड़े पाठशाला आए। जैसे ही भोलानाथ ने अपने बाबूजी को देखा तो वो दौड़कर बाबूजी की गोद में चढ़ गए और रोते-रोते बाबूजी का कंधा अपने आंसुओं से भिगा दिया। गुरूजी की मान मिनती कर बाबूजी भोलानाथ को घर ले आये।


भोलानाथ काफी देर तक बाबूजी की गोद में भी रोते रहे। लेकिन जैसे ही रास्ते में उन्होंने अपनी मित्र मंडली को देखा तो वो अपना रोना भूलकर मित्र मंडली में शामिल हो गए। मित्र मंडली उस समय चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी। भोलानाथ भी चिड़ियों को पकड़ने लगे। चिड़ियाँ तो उनके हाथ नहीं आयी। पर उन्होंने एक चूहे के बिल में पानी डालना शुरू कर दिया।


उस बिल से चूहा तो नहीं निकला लेकिन सांप जरूर निकल आया। सांप को देखते ही सारे बच्चे डर के मारे भागने लगे। भोलानाथ भी डर के मारे भागे। और गिरते-पड़ते जैसे-तैसे घर पहुंचे। सामने बाबूजी बैठ कर हुक्का पी रहे थे। लेकिन भोलानाथ जो अधिकतर समय अपने बाबूजी के साथ बिताते थे , उस समय बाबूजी के पास न जाकर सीधे अंदर अपनी मां की गोद में जाकर छुप गए।

डर से काँपते हुए भोलानाथ को देखकर मां घबरा गई । माँ ने भोलानाथ के जख्मों की धूल को साफ कर उसमें हल्दी का लेप लगाया। डरे व घबराए हुए भोलानाथ को उस समय पिता के मजबूत बांहों के सहारे व दुलार के बजाय अपनी मां का आंचल ज्यादा सुरक्षित व महफूज लगने लगा ।



शब्दार्थ 


  • अंचल - गोद, आँचल
  • मृदंग - ढोलक जैसा एक वाद्ययंत्र
  • तड़के-सबेरा
  • निबट-शौच आदि क्रिया करना
  • भभूत- राख
  • लिलार- ललाट,माथा
  • त्रिपुंड करना - एक प्रकार का तिलक लगाना
  • विराजमान-उपस्थित होना
  • शिथिल-ढीला
  • गोरस-दूध
  • भात-चाँवल
  • अफर जाना -भरपेट भोजन करना
  • हठ-जिद
  • ठौर-जगह
  • महतारी-माता
  • मरदुए-नर,आदमी
  • कडुआ तेल - सरसों का तेल
  • बोथना -सराबोर करना (ज्यादा लगाना )
  • उबटना-उबटन लगाना (हल्दी,बेसन का लेप )
  • बाट जोहना - प्रतीक्षा करना
  • सरकंडा-एक तरह की नुकीली घास
  • आचमनी - छोटी चम्मच
  • ठीकरा- मिट्टी का टुकड़ा
  • तम्बूरा-एक वाद्य यन्त्र
  • अमोला-आम का उगता हुआ पौधा
  • कुल्हिए-मिट्टी का लोटा
  • खटोली- छोटी सी खाट
  • ओहार-परदे के लिए डाला कपड़ा
  • उघारना -हटाना
  • जुआठा-बैल को हल में जोतना
  • बटोही-राही,पथिक
  • रहरी-अरहर ( दाल )
  • बिलाई-घुल गई
  • अन्ठई-कुत्ते के शरीर से चिपके रहने वाले कीड़े
  • चिरौरी- याचना,दीनता से की गई प्रार्थना

प्रश्नोत्तर



प्रश्न 1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर- यह बात सच है कि बच्चे (लेखक) को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता उसका लालन-पालन ही नहीं करते थे, उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। परंतु विपदा के समय उसे लाड़ की जरूरत थी, अत्यधिक ममता और माँ की गोदी की जरूरत थी। उसे अपनी माँ से जितनी कोमलता मिल सकती थी, उतनी पिता से नहीं। यही कारण है कि संकट में बच्चे को माँ या नानी याद आती है, बाप या नाना नहीं। माँ का लाड़ घाव को भरने वाले मरहम का काम करता है।


प्रश्न 2.आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर- शिशु अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रुचि लेता है। उनके साथ खेलना अच्छा लगता है। अपनी उम्र के साथ जिस रुचि से खेलता है वह रुचि बड़ों के साथ नहीं होती है। दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक भी है-बच्चे को अपने साथियों के बीच सिसकने या रोने में हीनता का अनुभव होता है। यही कारण है कि भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।


प्रश्न 3. आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर- विद्यार्थी अपने मन से तुकबंदी का निर्माण करें .


प्रश्न 4. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर- भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामग्रियों में कल्पना से अधिक अंतर आ गया है। भोलानाथ के समय में परिवार से लेकर दूर पड़ोस तक आत्मीय संबंध थे, जिससे खेलने की स्वच्छंदता थी। बाहरी घटनाओं-अपहरण आदि का भय नहीं था। खेल की सामग्रियाँ बच्चों द्वारा स्वयं निर्मित थीं। घर की अनुपयोगी वस्तु ही उनके खेल की सामग्री बन जाती थी, जिससे किसी प्रकार ही हानि की संभावना नहीं थी। धूल- मिट्टी से खेलने में पूर्ण आनंद की अनुभूति होती थी। न कोई रोक, न कोई डर, न किसी का निर्देशन । जो था वह सब सामूहिक बुधि की उपज थी।

आज भोलानाथ के समय से सर्वथा भिन्न खेल और खेल सामग्री और ऊपर से बड़ों का निर्देशन और सुरक्षा हर समय सिर पर हावी रहता है। आज खेल सामग्री स्वनिर्मित न होकर बाज़ार से खरीदी हुई होती है। खेलने की समय-सीमा भी तय कर दी जाती है। अतः स्वच्छंदता नहीं होती है। धूल-मिट्टी से बच्चों का परिचय ही नहीं होता है।


प्रश्न 5.पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर- पाठ का सबसे रोमांचक प्रसंग वह है जब एक साँप सब बच्चों के पीछे पड़ जाता है। तब वे बच्चे किस प्रकार गिरते-पड़ते भागते हैं और माँ की गोद में छिपकर सहारा लेते हैं-यह प्रसंग पाठक के हृदय को भीतर तक हिला देता है। | इस पाठ में गुदगुदाने वाले प्रसंग भी अनेक हैं। विशेष रूप से बच्चे के पिता का मित्रतापूर्वक बच्चों के खेल में शामिल होना मन को छू लेता है। जैसे ही बच्चे भोज, शादी या खेती का खेल खेलते हैं, बच्चे का पिता बच्चा बनकर उनमें शामिल हो जाता है। पिता का इस प्रकार बच्चा बन जाना बहुत सुखद अनुभव है जो सभी पाठकों को गुदगुदा देता है।


प्रश्न 6. इस उपन्यास के अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।
उत्तर- आज की ग्रामीण संस्कृति को देखकर और इस उपन्यास के अंश को पढ़कर ऐसा लगता है कि कैसी अच्छी रही होगी वह समूह-संस्कृति, जो आत्मीय स्नेह और समूह में रहने का बोध कराती थी। आज ऐसे दृश्य दिखाई नहीं देते हैं। पुरुषों की सामूहिक-कार्य प्रणाली भी समाप्त हो गई है। अतः ग्रामीण संस्कृति में आए परिवर्तन के कारण वे दृश्य नहीं दिखाई देते हैं जो तीस के दशक में रहे होंगे-


आज घर सिमट गए हैं। घरों के आगे चबूतरों का प्रचलन समाप्त हो गया है।

आज परिवारों में एकल संस्कृति ने जन्म ले लिया, जिससे समूह में बच्चे अब दिखाई नहीं देते।

आज बच्चों के खेलने की सामग्री और खेल बदल चुके हैं। खेल खर्चीले हो गए हैं। जो परिवार खर्च नहीं कर पाते हैं वे बच्चों को हीन-भावना से बचाने के लिए समूह में जाने से रोकते हैं।

आज की नई संस्कृति बच्चों को धूल-मिट्टी से बचना चाहती है।

घरों के बाहर पर्याप्त मैदान भी नहीं रहे, लोग स्वयं डिब्बों जैसे घरों में रहने लगे हैं।

प्रश्न 7. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर- छात्र स्वयं अपने अनुभव अंकित करें।


प्रश्न 8.यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-पिता का अपने साथ शिशु को नहला-धुलाकर पूजा में बैठा लेना, माथे पर तिलक लगाना फिर कंधे पर बैठाकर गंगा तक ले जाना और लौटते समय पेड़ पर बैठाकर झूला झुलाना कितना मनोहारी दृश्य उत्पन्न करता है।

पिता के साथ कुश्ती लड़ना, बच्चे के गालों का चुम्मा लेना, बच्चे के द्वारा पूँछे पकड़ने पर बनावटी रोना रोने का नाटक और शिशु को हँस पड़ना अत्यंत जीवंत लगता है।

माँ के द्वारा गोरस-भात, तोता-मैना आदि के नाम पर खिलाना, उबटना, शिशु का शृंगार करना और शिशु का सिसकना, बच्चों की टोली को देख सिसकना बंद कर विविध प्रकार के खेल खेलना और मूसन तिवारी को चिढ़ाना आदि अद्भुत दृश्य उकेरे गए हैं। ये सभी दृश्य अपने शैशव की याद दिलाते हैं।

प्रश्न 9. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर- इस पाठ के लिए माता का अँचल’ शीर्षक उपयुक्त नहीं है। इसमें लेखक के शैशव की तीन विशेषताओं का वर्णन हुआ है

बच्चे का पिता के साथ लगाव

शैशव की मस्त क्रीड़ाएँ।

माँ का वात्सल्य

‘माता का अँचल’ इन तीनों में से केवल अंतिम को ही व्यक्त करता है। अत: यह एकांगी और अधूरा शीर्षक है। इसका अन्य शीर्षक हो सकता है

मेरा शैशव

कोई लौटा दे मेरे रस-भरे दिन!

प्रश्न 10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर- शिशु की जिद में भी प्रेम का प्रकटीकरण है।

शिशु और माता-पिता के सानिध्य में यह स्पष्ट करना कठिन होता है कि माता-पिता का स्नेह शिशु के प्रति है या शिशु का माता-पिता के प्रति दोनों एक ही प्रेम के सम्पूरक होते हैं।

शिशु की मुस्कराहट, शिशु को उनकी गोद में जाने की ललक उनके साथ विविध | क्रीड़ाएँ करके अपने प्रेम के प्रकटीकरण करते हैं।

माता-पिता की गोद में जाने के लिए मचलना उसका प्रेम ही होता है। इस प्रकार माता-पिता के प्रति शिशु के प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना कठिन होता है।

प्रश्न 11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर- हमारा बचपन इस पाठ में वर्णित बचपन से पूरी तरह भिन्न है। हमें अपने पिता का ऐसा लाड़ नहीं मिला। मेरे पिता प्रायः अपने काम में व्यस्त रहते हैं। प्रायः वे रात को थककर ऑफिस से आते हैं। वे आते ही खा-पीकर सो जाते हैं। वे मुझसे प्यार-भरी कुछ बातें जरूर करते हैं। मेरे लिए मिठाई, चाकलेट, खिलौने भी ले आते हैं। कभी-कभी स्कूटर पर बिठाकर घुमा भी आते हैं, किंतु मेरे खेलों में इस तरह रुचि नहीं लेते। वे हमें नंग-धडंग तो रहने ही नहीं देते। उन्हें मानो मुझे कपड़े से ढकने और सजाने का बेहद शौक है। मुझे बचपन में ए-एप्पल, सी-कैट रटाई गई। हर किसी को नमस्ते करनी सिखाई गई। दो ढाई साल की उम्र में मुझे स्कूल भेजने का प्रबंध किया गया। तीन साल के बाद मेरे जीवन से मस्ती गायब हो गई। मुझे मेरी मैडम, स्कूल-ड्रेस और स्कूल के काम की चिंता सताने लगी। तब से लेकर आज तक मैं 90% अंक लेने के चक्कर में अपनी मस्ती को अपने ही पाँवों के नीचे रौंदता चला आ रहा हूँ। मुझे हो-हुल्लड़ करने का तो कभी मौका ही नहीं मिला। शायद मेरा बचपन बुढ़ापे में आए? या शायद मैं अपने बच्चों या पोतों के साथ खेल कर सकें।


प्रश्न 12. फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर- फणीश्वरनाथ का उपन्यास ‘मैला आँचल’ पठनीय है। विद्यालय के पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
नागार्जुन का उपन्यास ‘बलचनमा’ आँचलिक है। उपलब्ध होने पर पढ़ें।




अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर



प्रश्न 1. ‘माता का अँचल’ पाठ में भोलानाथ के पिता की दिनचर्या का वर्णन करते हुए आज के एक सामान्य व्यक्ति की दिनचर्या से उसकी तुलना कीजिए।

उत्तर- ‘माता का अँचल’ पाठ में वर्णित भोलानाथ के पिता की दिनचर्या के बारे में यह पता चलता है कि वे सुबह जल्दी उठते और नहा-धोकर पूजा-पाठ पर बैठ जाते थे। वे अकसर बालक भोलानाथ (अपने पुत्र) को भी अपने साथ बिठा लिया करते थे। वे प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे। पूजा के समय वे भोलानाथ को भभूत से तिलक लगा देते थे। पूजा-पाठ के उपरांत वे रामनामी बही पर एक हज़ार बार राम-राम लिखते थे और अपनी पाठ करने की पोथी में रख लेते थे। इसके उपरांत वे पाँच सौ बार कागज के टुकड़े पर राम-राम लिखते और उन्हीं कागजों पर आटे की छोटी-छोटी गोलियाँ रखकर लपेटते। उन गोलियों को लेकर वे गंगा जी के तट पर जाते और अपने हाथों से मछलियों को खिला देते थे। इस समय भी भोलानाथ उनके साथ ही हुआ करता था। आज के आम आदमी की सुबह इस सुबह की दिनचर्या से इसलिए भिन्न है क्योंकि आज इस भौतिकवादी युग में धन-दौलत के पीछे लगी भागम-भाग के कारण आम आदमी के पास इतना समय ही नहीं है।




प्रश्न 2. चिड़िया उड़ाते-उड़ाते भोलानाथ और उसके साथियों ने चूहे के बिल में पानी डालना शुरू किया। इस घटना का के या परिणाम निकला?

उत्तर- खेल से चिड़ियों को उड़ाने के बाद भोलानाथ और उसके साथी को चूहों के बिल में पानी डालने का ध्यान आया। सभी ने एक टीले पर जाकर चूहों के बिल में पानी उलीचनी शुरू किया। पानी नीचे से ऊपर फेंकना था। यह कार्य करते हुए सभी थक गए थे। तभी उनकी आशा के विपरीत चूहे के स्थान पर साँप निकल आया, साँप से भयभीत होकर सभी रोतेचिल्लाते बेतहाशा भागने लगे। कोई औधा गिरा, कोई सीधा। किसी का सिर फूटा, किसी का दाँत टूटा। सभी भागते ही जा रहे थे। भोलानाथ की देह लहू-लुहान हो गई। पैरों के तलवे में अनेक काँटे चुभ गए थे।



प्रश्न 3. ‘माता का अँचल’ पाठ में वर्णित समय में गाँवों की स्थिति और वर्तमान समय में गाँवों की स्थिति में आए परिवर्तन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- पहले गाँवों की स्थिति बहुत अच्छी न थी। वहाँ बिजली, पानी, परिवहन जैसी सुविधाएँ नाम मात्र की थी। लोगों की आजीविका का साधन कृषि थी। आज गाँवों में टेलीविज़न के प्रचार-प्रसार से लोगों में एकाकी प्रवृत्ति बढ़ी है। बच्चे परंपरागत खेलों से विमुख होकर वीडियोगेम, टेलीविज़न आदि के साथ अपना समय बिताना चाहते हैं। इस बढ़ती आधुनिकता ने ग्रामीण संस्कृति को पतन की ओर उन्मुख कर दिया है।

प्रश्न 4. पिता भले ही बच्चे से कितना लगाव रखे पर माँ अपने हाथ से बच्चे को खिलाए बिना संतुष्ट नहीं होती है- ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर भोलानाथ के पिता भोलानाथ को अपने साथ रखते, घुमाते-फिराते, गंगा जी ले जाते। वे भोलानाथ को अपने साथ चौके में बिठाकर खिलाते थे। उनके हाथ से भोजनकर जब भोलानाथ का पेट भर जाता तब उनकी माँ थोड़ा और खिलाने का हठ करती। वे बाबू जी से पेट भर न खिलाने की शिकायत करती और कहती-देखिए मैं खिलाती हूँ। माँ के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भरता है। यह कहकर वह थाली में दही-भात मिलाती थी और अलग-अलग तोता-मैना, हंस-कबूतर आदि पक्षियों के बनावटी नाम लेकर भोजन का कौर बनाती तथा उसे खिलाते हुए यह कहती कि खालो नहीं तो ये पक्षी उड़ जाएँगे। इस तरह भोजन जल्दी से भरपेट खा लिया करता था।


प्रश्न 5. बच्चे रोना-धोना, पीड़ा, आपसी झगड़े ज्यादा देर तक अपने साथ नहीं रख सकते हैं। माता के अँचल’ पाठ के आधार पर बच्चों की स्वाभाविक विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर- बच्चे मन के सच्चे होते हैं। वे आपसी झगड़े, रोना-धोना, कष्ट की अनुभूति आदि जितनी जल्दी करते हैं उतनी ही जल्दी भूल जाते हैं। वे आपस में फिर इस तरह घुल-मिल जाते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों के सरल तथा निश्छल स्वभाव का पता चलता है। वे लड़ाई-झगड़े की कटुता को अधिक देर तक अपने मन में नहीं रख सकते हैं। खेल-खेल में रो देना या हँस देना उनके लिए आम बात है। अपने मनोरंजन के लिए वे किसी को चिढ़ाने से। भी नहीं चूकते हैं। सुख-दुख से बेपरवाह हो वे अपनी ही दुनिया में मगन रहते हैं।


प्रश्न 6. मूसन तिवारी को बैजू ने चिढ़ाया था, पर उसकी सजा भोलानाथ को भुगतनी पड़ी, ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- एक दिन भोलानाथ और उसके साथी बाग से आ रहे थे कि उन्हें मूसन तिवारी (गुरु जी) दिखाई दिए। उन्हें कम दिखई पड़ता था। साथियों में से ढीठ बैजू ने उन्हें चिढ़ाते हुए कहा ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करेला का चोखा ।’ गुरु जी को चिढ़ाकर सभी बच्चे घर की ओर भागने लगे। गुरु जी बच्चों को पकड़ने के लिए भागे पर बच्चे हाथ न आए। वे पाठशाला चले गए। पाठशाला से चार बच्चे भोलानाथ और बैजू को पकड़ने के लिए घर आ गए। शरारती बैजू तथा अन्य बच्चे भाग गए पर भोलानाथ को गुरु जी के शिष्य पकड़कर पाठशाला ले गए। जिन बच्चों ने गुरु जी को चिढ़ाया था, उनके साथ रहने के कारण उन्होंने भोलानाथ को दंडित किया।

प्रश्न 7. भोलानाथ और उसके साथी खेल ही खेल में दावत की योजना किस तरह बना लेते थे?

उत्तर- भोलानाथ और उसके साथी खेलते-खेलते भोजन बनाने की योजना बना लेते। फिर वे सब भोजन बनाने के उपक्रम में जुट जाते घड़े के मुँह का चूल्हा बनाया जाता। दीये (दीपक के पात्र) की कड़ाही और पूजा की आचमनी की कलछी बनाते। वे पानी को घी, धूल को आटा, बालू को चीनी बनाकर भोजन बनाते तथा सभी भोजन के लिए पंगत में बैठ जाते। उसी समय बाबू जी भी आकर पंगत के अंत में बैठ जाते। उनको देखते ही बच्चे हँसते-खिलखिलाते हुए भाग जाते।


प्रश्न 8. भोलानाथ और उसके साथी खेल-खेल में फ़सल कैसे उगाया करते थे?

उत्तर- खेलते-खेलते भोलानाथ और उसके साथी खेती करने और फ़सल उगाने की योजना बनाते चबूतरे के छोर पर घिरनी गाड़कर बाल्टी को कुआँ बना लेते पूँज की पतली रस्सी से चुक्कड़ बाँधकर कुएँ में लटका दिया जाता। दो लड़के बैलों की भाँति मोट खींचने लगते। चबूतरा, खेत, कंकड़, बीज बनता और वे खेती करते। फ़सल तैयार होने में देर न लगती। वे जल्दी से फ़सल काटकर पैरों से रौंदकर ओसाई कर लेते।


प्रश्न 9. भोलानाथ की माँ उसे किस तरह कन्हैया बना देती?

उत्तर-भोलानाथ जब अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा होता तभी भोलानाथ की माँ उसे अचानक ही पकड़ लेती और भोलानाथ के लाख ना-नुकर करने पर भी चुल्लूभर कड़वा तेल सिर पर डालकर सराबोर कर देती। उसकी नाभि और। लिलार पर काजल की बिंदी लगा देती। बालों में चोटी गूंथकर उसमें फूलदार लट्टू बाँधती और रंगीन कुरता-टोपी पहनाकर ‘कन्हैया’ बना देती थी।



मूल्यपरक प्रश्न



प्रश्न 1. आजकल बच्चे घरों में अकेले खेलते हैं, पर भोलानाथ और उसके साथी मिल-जुलकर खेलते थे। इनमें से आप भावी जीवन के लिए किसे उपयुक्त मानते हैं और क्यों?

उत्तर- यह सत्य है कि आजकल के बच्चे कंप्यूटर पर गेम, वीडियो गेम, टेलीविज़न पर कार्टून देखते हुए अकेले समय बिताते हैं, परंतु भोलानाथ का समय साथियों के साथ खेलते हुए बीतता था। खेत में चिड़ियाँ उड़ाना हो या चूहे के बिल में पानी डालना या खेती करना, बारात निकालना आदि खेल ऐसे थे जिनमें बच्चों का एक साथ खेलना आवश्यक था। मैं मिलजुलकर खेलने को भावी जीवन के लिए उपयुक्त मानता हूँ, क्योंकि-

इससे सामूहिकता की भावना पनपती है।

इस प्रकार के खेलों से सहयोग की भावना विकसित होती है।

मिल-जुलकर खेलने से सभी बच्चे अपना-अपना योगदान देते हैं, जिससे सक्रिय सहभागिता की भावना का उदय होता है।

मिल-जुलकर खेलने से बच्चों में हार-जीत को समान रूप से अपनाने की प्रेरणा मिलती है जिनका भावी जीवन में बड़ी उपयोगिता होती है।

प्रश्न 2. भोलानाथ के पिता भोलानाथ को पूजा-पाठ में शामिल करते, उसे गंगा तट पर ले जाते तथा लौटते हुए पेड़ की डाल पर झुलाते। उनका ऐसा करना किन-किन मूल्यों को उभारने में सहायक है?

उत्तर- भोलानाथ के पिता उसको अपने साथ पूजा पर बैठाते। पूजा के बाद आटे की गोलियाँ लिए हुए गंगातट जाते। मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाते, वहाँ से लौटते हुए उसे पेड़ की झुकी डाल पर झुलाते। उनके इस कार्यव्यवहार से भोलानाथ में कई मानवीय मूल्यों का उदय एवं विकास होगा। ये मानवीय मूल्य हैं-

भोलानाथ द्वारा अपने पिता के साथ पूजा-पाठ में शामिल होने से उसमें धार्मिक भावना का उदय होगा।

प्रकृति से लगाव उत्पन्न होने के लिए प्रकृति का सान्निध्य आवश्यक है। भोलानाथ को अपने पिता के साथ प्रकृति के निकट आने का अवसर मिलता है। ऐसे में उसमें प्रकृति से लगाव की भावना उत्पन्न होगी।

मछलियों को निकट से देखने एवं उन्हें आटे की गोलियाँ खिलाने से भोलानाथ में जीव-जन्तुओं के प्रति लगाव एवं दया भाव उत्पन्न होगा।

नदियों के निकट जाने से भोलानाथ के मन में नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने की भावना का उदय एवं विकास होगा।

वृक्षों से निकटता होने तथा उनकी शाखाओं पर झूला झूलने से भोलानाथ में पेड़ों के संरक्षण की भावना विकसित होगी।

प्रश्न 3. वर्तमान समय में संतान द्वारा माँ-बाप के प्रति उपेक्षा का भाव दर्शाया जाने लगा है जिससे वृद्धों की समस्याएँ बढ़ी हैं तथा समाज में वृद्धाश्रमों की जरूरत बढ़ गई है। माता का अँचल’ पाठ उन मूल्यों को उभारने में कितना सहायक है जिससे इस समस्या पर नियंत्रण करने में मदद मिलती हो।

उत्तर- वर्तमान समय में भौतिकवाद का प्रभाव है। अधिकाधिकथन कमाने एवं सुख पाने की चाहत ने मनुष्य को मशीन बनाकर रख दिया है। ऐसे में संतान के पास बैठने, उसके साथ खेलने और घूमने-फिरने का माता-पिता के पास समय नहीं हैं। इस कारण एक ओर माता-पिता बूढ़े होने पर उपेक्षा का शिकार होते हैं तो दूसरी ओर वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है। ‘माता का अंचल’ पाठ में भोलानाथ का अधिकांश समय अपने पिता के साथ बीतता था। वह अपने पिता के साथ पूजा में शामिल होता था तो पिता जी भी मनोविनोद के लिए उसके साथ खेलों में शामिल होते थे। इससे भोलानाथ में अपने माता-पिता से अत्यधिक लगाव, सहानुभूति, मिल-जुलकर साथ रहने की भावना, माता-पिता के प्रति दृष्टिकोण में व्यापकता, माता-पिता के प्रति उत्तरदायित्व, सामाजिक सरोकारों में प्रगाढ़ता, आएगी जिससे वृद्धों की उपेक्षा एवं वृद्धाश्रम की बढ़ती आवश्यकता पर रोक लगाने में सहायता मिलेगी।



जय हिन्द
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